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शनिवार, 4 अप्रैल 2009

आज ४ दिसम्बर


कल मेने अपने बचपन के सुनहरे दिन आपको बताये थे
बस ऎसे ही मस्ती भरे दिन निकल रहे थे
चारो ओर मजे ही मजे थे.जिन्दगी १ हसीन सपना लग रही थी.
१ बात अब याद आ रही हे
हमारे पडोस मे १ मा थी.उनके पती आकस्मीक मौत के शिकार हो थे.
उनके ३ बच्चे थे.मेरे से काफ़ी स्नेह था उनको मुझे बहुत चाहती थी
मे तो स्कुल से आने के बाद उनके घर ही रहता था,गळी कि सभी औरते शाम को मिल बेठ कर
बाते करती थी.मेरी दादी.वो प्यारी सी मा और बहुत सी आस-पास कि सब मिल बेठ कर बाते कर रही थी,
मेने घर पर किसी बात के लिये जिद्द कर दी थी,सो मेरी मम्मी (बाई) ने मुझे थप्पड मार दिया था.
इस कारण मेने घर पर भोजन नही किया था.और मे अपने घर से रोते हुऎ अपनी मा के घर पडोस मे आ गया था
मुझे भुख भी लग रही थी सुबह का खाया हुंया था,तब जब मे रो रहा था.तो उन्होने कहा कि "क्या बात हे क्यों रो रहा हे"
मे तॊ अपने रोने का कारण ही भुल गया था.की मे क्यों रो रहा हुं.
फ़ीर भी उन्होने मुझे पुंछा की "खाना खाया की नही" 
"मेने कहा की नही"
तो उन्हॊने अपने घर से खाना लाकर मुझे खिलाने लगी
मुझे नये दांत आ रहे थे
सो खाना खाते वक्त मुंह मे दर्द हो रहा था
मे फिर रोने लग गया
और कहा की 
"मुंह मे दर्द हे मे रोटी नही खा सकता"
तो उन्होने अपने मुंह से खुद रोटी चबा कर 
मुझे खिलाई.
क्या दिन थे कितना प्यार मोहब्बत थी उस जमाने मे 
पर आज यहां पर सब जगह स्वार्थे दिख रहा हे
सब अपने अपने फायदे देख रहे हे.मुझे तो अब लोगो की स्वार्थे
देख कर दिल अजीब सी घबराहट से भर जाता हे
क्या करे कुछ समझ मे नही आ रहा हे आज मेरी हालत का जिम्मेदार कौन हे.
अब आगे आप भाई- बहीन लोग अगर कुछ गलत लिखने मे भुल हो गयी हो तो 
मुझे माफ करना. मुझे इसी तरह लिखना आ रहा हे,
बाकी अगले अकं मे 

आपका 
जयन्थी जसोल 

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

आज ३ अप्रेल का दिन


बचपन मे भी ये दिन आया था.मुझे नही मालुम मेने उस दिन क्या किया था
पर इतना पता हे की वो सब अच्छा हि दिन होगा खाना पीना खेलना लडाई करना रुठना गली मे भागना उस वक्त सब अच्छा हि लगता था.
गली मे बहुत से पालतु कुत्ते थे.उनके साथ खेलने मे मजे आते थे.
क्या जमाना था ना कोई टेन्शन ना कोई परेशानी मजा आ रहा था.
  पर आज जब ये सब सोचता हू तो आज मेरी हालत देखकर दिल घबरा रहा हे ना जाने कि कल क्या होंगा.
कल का कोई पता नही. कोई भविष्य नजर नही आ रहा हे.

काश प्रभु हमे बचपन वाले दिन फ़िर भेज दे पर क्या करे जिन्दगी हे ये सब चलता रहता हे.अब आगे भगवान महावीर कि मर्जी.

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

शुरुआत बचपन से


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
७ साल कि उम्र मे ३ कक्षा मे पापा ने भरती करवा दिया था
गांव जसोल था! अपना राज चलता था सो सीधे ३ मे भरती होने मे कोई दिक्कत नही थी.वेसे गणित मे होशियार थे.सो आराम से भरती हो गये.उस वक्त खाना-पिना मौज मनाना यही जिन्दगी थी.
आराम से दिन निकल रहे थे.कोई टेन्शन नहीं थी.तब पता नहि था कि जिन्दगी मे आगे इतनी तकलीफ़ ऒर टेन्शन होंगी.हा ये भी सही हे कि भविष्य का किसको पता था और होता भी नही पता होता तो शायद हम अपनी जिन्दगी इस तरह बनाते राजा महराजा कि तरह.खेर भी अच्छे दिन थे.मजा आ रहा था.
और यही जिन्दगी मे बाकि कल 

आपका जयन्थी

मंगलवार, 31 मार्च 2009

आज से अपना नया ब्लोग्स


भाई लोगो आज मेरी इस जिन्दगी मे बहुत परेशानीयां हें,
कोई रास्ता नजर नंही आ रहा हें
फिर भी हम खुश हे 

मेरी जिन्दगी के पन्ने अब रोज जब भी वक्त मिलेंगा 
तब लिखुंगा 

आप अपनी सलाह जरूर देना जी 

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